वो रात थी 25 जून 1975, गहरी नींद में सोए करोड़ों भारतीय नागरिकों को ये अंदाजा तक नही था कि सुबह होते—होते उनका लोकतांत्रिक अधिकार छीन लिया जाएगा। उस रात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत में आपातकाल (Emergency) लगाने की घोषणा की — एक ऐसा फैसला जिसने देश के लोकतांत्रिक इतिहास को झकझोर कर रख दिया। राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत इस आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए, और कुछ ही घंटों में पूरी व्यवस्था बदल गई।
सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया कि देश में भीतरी अशांति, राजनीतिक विरोध, और न्यायपालिका के हस्तक्षेप की वजह से केंद्र सरकार सामान्य रूप से काम नहीं कर पा रही थी। हालांकि, आलोचकों का कहना था कि यह फैसला इंदिरा गांधी की सत्ता बचाने के लिए लिया गया तानाशाही कदम था — क्योंकि ठीक एक दिन पहले, 24 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार दिया था।
रातोंरात विपक्षी नेताओं को उनके घरों से उठा लिया गया। अखबारों की छपाई रोक दी गई, प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई। देशभर में अनुशासन और शांति बनाए रखने के नाम पर मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई जैसे दर्जनों नेता गिरफ्तार कर लिए गए। यह आपातकाल 21 महीने (25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक) चला ।
क्या आज फिर Emergency लागू हो सकती है?
25 जून 1975 को जब पहली बार भारत में आपातकाल घोषित किया गया था, तब न तो संसद में ज़्यादा सवाल उठे और न ही अदालतों ने दखल दिया। लेकिन सवाल ये है कि क्या 2025 में भी सरकार इतनी आसानी से Emergency लागू कर सकती है?
इस सवाल का जवाब है — हां, पर अब पहले जितना आसान नहीं।
आज भी भारतीय संविधान में आपातकाल लगाने की विधि मौजूद है। अनुच्छेद 352 के तहत, यदि देश पर युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह का खतरा हो, तो राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जा सकता है। लेकिन 1975 के बाद संविधान में 44वें संशोधन (1978) के ज़रिए कई कड़े बदलाव किए गए हैं, जिससे अब इस व्यवस्था का दुरुपयोग करना कठिन हो गया है।
अब प्रधानमंत्री अकेले इमरजेंसी की सिफारिश नहीं कर सकते। पूरे मंत्रिमंडल की लिखित मंजूरी अनिवार्य है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि फैसला सामूहिक हो, व्यक्तिगत नहीं। 1975 में इमरजेंसी “internal disturbance” के नाम पर लगाई गई थी — यह शब्द काफी अस्पष्ट और मनमाना था। 44वें संशोधन के बाद इसे बदलकर “armed rebellion” (सशस्त्र विद्रोह) कर दिया गया — जो एक स्पष्ट और गंभीर स्थिति को ही दर्शाता है। अब इमरजेंसी लागू करने के 30 दिनों के भीतर संसद से मंजूरी लेना जरूरी है।